तुम कहने दो करने दो, मंज़ूर नहीं
मेरे साथी बन चलो, कोई हुज़ूर नहीं
तुम बनाओ राह, फिर चलने की दो छूट
कुछ चुभता है अन्दर जब सपने जाए टूट
में गिरकर भी सम्भलूं, पर मजबूर नहीं,
तुम कहने दो…
मुझे अपनी है सोच, कभी तुमने ये सोचा?
मेरे अपने है गीत, एक खुदकी हे वाचा,
वो खोये हे गीत और गुरुर कहीं
तुम कहने दो….
आसमान छूना है दिलमे उमंग
है खुशियाँ लूँटानी पर झोली है तंग
मुझे मिलती सज़ा, जब कूसुर नहीं
तुम कहने दो..मेरे साथी बन चलो…
-खेवना देसाई ( A Professor of Sociology)